Friday, September 5, 2008
Nokia codes
*#06# - Get the Serial Number/IMEI.
structure of the IMEI : XXXXXX XX XXXXXX X
TAC FAC SNR SP
• TAC = Type approval code
• FAC = Final assembly code
• SNR = Serial number
• SP = Spare
*#0000# - Get the SW version (e.g. V 5.27.0 / 28-06-04 / NHL-10 )
*#2820# - Get the Bluetooth (BT) device address
xx# - Quick contact access (xx = location number, e.g. : 17#)
*#62209526# - Get the MAC address of the WLAN adapter, this information is only available on the new models (S60 3rd edition) which have WLAN.
When switching the phone on with the "ABC" key (pen) pressed, no application is started; it's a "safeboot".
WARNING: here is the list of some dangerous codes; use them with care, I'm not responsible for any damage...
*#7370925538# (*#Res0Wallet#) - Deletes the code for the "wallet" and erase all the content of the "wallet"
*#7780# - Reset to the original settings; some informations are also deleted and need to be re-entered.
*#7370# - Soft format - this will resets all the phone memory (like re-format a disk); make sure to have full battery charged !
[Green]+[def3]+[*+] during a power on performs a hard format : this will return the phone like you have received; make sure to have full battery charged !
*#92702689# (WAR0ANTY) enters into the warranty menu - this code doesn't work with all series 60 phone
Thursday, August 14, 2008
kaaSh dunyaa meiN ye "kaaSh" nah hotaa
ziNdaa ho kar bhee maiN laaSh nah hotaa
Bhoole Hai Rafta Rafta Tumhe Muddaton Me Hum...
Kishton Me Khudkhushi Ka Maza Humse Puchiye...
•
Usse Jo Kabhi Dard Hota Tha
Meri Aankh Mein Ek Aansoo Aane Se,
Aaj Vo Bohat Khush Hota Hai
Meri Hastiyaan Mitaane Se,
Ab Toh Maum Ki Ban Chukki Hu Mein Unke Bagair
Koi Tapish bhi Na Le Jaye Guzar Kar Mere Sirhaane Se,
Hum Toh Jal Chukke Hai Poora
Aur Ab Kaun Rok Sakta Hai Hamein Khaak Ho Jaane Se,
Umeed Toh Ab Bhi Mujhe Unse Hai
Shayad Kafan Dene Hi Aa Jaaye Baad Mere Jaane Ke...nm
yeh nagme hume bahat pasand hai...sayad aap sabko pasand aaye
Dunia ke sitam ki koi perwah nahi mujhko,
wo kyoun mujhpe ungliya uthaye ja rahe hain.
Jis shaks ko janta tha ek chehre se ''kashif''
Uske kitne chehre samne laye ja rahe hain.
Usse Jo Kabhi Dard Hota Tha
Meri Aankh Mein Ek Aansoo Aane Se,
Aaj Vo Bohat Khush Hota Hai
Meri Hastiyaan Mitaane Se,
Ab Toh Maum Ki Ban Chukki Hu Mein Unke Bagair
Koi Tapish bhi Na Le Jaye Guzar Kar Mere Sirhaane Se,
Hum Toh Jal Chukke Hai Poora
Aur Ab Kaun Rok Sakta Hai Hamein Khaak Ho Jaane Se,
Umeed Toh Ab Bhi Mujhe Unse Hai
Shayad Kafan Dene Hi Aa Jaaye Baad Mere Jaane Ke...nm
yeh nagme hume bahat pasand hai...sayad aap sabko pasand aaye
Friday, August 1, 2008
Saturday, July 26, 2008
Saturday, July 19, 2008
गर आँसू तेरी आँख का होता,
गिरता गाल को चुमते हुए,
फिर गिर के तेरे होठों पर,
फना हो जाता वहीं हॅसते हुए,
पर
जो तुम होती मेरी आँख का आसु,
भले गुजरती उम्र गम सह-सह कर,
तुझे खो ना दूं कही इस डर से,
मै ना रोता ज़िदगी भर|
जब गम तेरा देख के दिल मुझसे नही सम्भलता है
तो तेरी खुशियों की खातिर ये यूं ही दिन रात जलता है
ऐसे तो सुनता ही नही खुदा दुआ हमारी अक्सर
पर शायद कभी-कभी हमारे आँसुवों से वो भी पिघलता है
खुदा ये कैसा फैसला तेरा
क्या मेरी मोहब्बत थी झुठी,
उनको उनका प्यार मिला,
मुझसे किस्मत क्यों रूठी,
वो नही मिले क्यों मुझको?
इस पर जवाब खुदा का आया,
तुने सच्चे दिल से उसकी खुशीयाँ माँगी,
तभी तो उसे उसका प्यार मिल पाया,
खुदा ये कैसा फैसला तेरा,
क्या मेरी मोहब्बत थी झुठी,
उनको उनका प्यार मिला,
मुझसे किस्मत क्यों रूठी,
वो नही मिले क्यों मुझको?
इस पर जवाब खुदा का आया,
तुने सच्चे दिल से उसकी खुशीयाँ माँगी,
तभी तो उसे उसका प्यार मिल पाया,
दूर रह कर भी,
कितने करीब हो तुम,
आज ये जान पता हूँ,
जब तेरी यादों को,
सीने से लगाता हूँ,
करीब रह के भी,
न जान पाया तुझे,
आज ये सोच कर,
सिर्फ़ पछताता हूँ,
अंधेरे मे छुप गया चाँद मेरा,
हुआ उदास न जाने क्यों दिल मेरा,
जानता हूँ न तू मेरी और न मैं तेरा,
दीदार-ऐ-यार को तरसे क्यों दिल मेरा,
रौशनी की एक किरण उस पर आई,
झलक देख क्यों न भरा दिल मेरा,
एक पल सुखी एक पल दुखी,
दो घड़ी कुछ इस तरह बीत चली,
ज़िंदगी जैसे मुझसे रूठ चली,
एक पल अपना एक पल पराया,
अपनों ने अपनों से धोखा खाया,
ज़िंदगी से अपनों से दूर चला आया,
एक पल खोया एक पल पाया,
प्यार देके कभी प्यार न पाया,
ज़िंदगी ने न जाने कितना रुलाया,
एक पल तेरा एक पल मेरा,
जो बीत गया वो क्या तेरा क्या मेरा,
ज़िंदगी बीती न हो सका कोई मेरा,
एक पल जागा एक पल सोया,
न जाने कितने सपने सजोया,
ज़िंदगी भर रहा सपनो मे खोया,
एक पल भुला एक पल याद आया,
तुझ संग बीता हर पल याद आया,
ज़िंदगी भूला मगर तुझे न भूल पाया,
सूरज की किरण मेरे चाँद से टकराई,
तन बदन मे मेरे जैसे आग लग आई,
उसने ली कुछ इस तरह से अंगडाई,
फूलों से उड़ एक तितली मेरे करीब आई,
आँखें खुली नजरो से नज़रे टकराई,
थोड़ा वो शरमाई फिर मुस्कुराई,
दिल मे मेरे सैकडो छुरिया चलायी,
तड़पते रहे कमबख्त मौत भी न आई,
हँसते है ज़माने मैं और भी कई,
दिल से हँसते पहली बार देखा है,
आज मैंने उनको हँसते हुए देखा है,
उनकी हँसी दिल को छू जाती है,
चुपके चुपके कुछ कह जाती है,
कसम है उदास न होना तुम कभी,
ये खूबसूरत हँसी न खोना कभी,
तेरी हँसी से है गुलशन खिले,
आता है सावन है फूल खिले,
जुदाई की घड़ी आई,
नजरो से नज़रे टकराई,
आँखो से वो ओझल हुई,
वो मेरी नजरो से ओझल हुई,
रेगिस्तान मे वर्षा आई,
मेरी आँखे इस कदर भर आई,
दिल के फूल मुरझाये,
जब उसकी आँखें भर आई,
खो गया चाँद मेरा कही,
ढूँढ कर लाये उसे मेरे पास कोई,
वो बहुत शर्मीला है मगर,
मेरे यार जितना शर्मीला नही,
वो बहुत खुबसूरत है मगर,
मेरे यार के आगे कुछ भी नही,
वो देता सुकून दिल को मगर,
मेरे यार बिन मुझे सुकून नही,
वो करता रोशन जग को मगर,
मेरे यार बिन दिल रोशन नही,
जिंदगी दोस्तों के नाम कर दी,
उनकी खातिर जान कुर्बान कर दी,
मरने का हमे कोई गम नही,
खुशी है दोस्तों को कोई गम नही,
दोस्तों की खुशी में खुश रहे हम,
दर्द अपना न किसी को दे सके हम,
दोस्तों की हँसी में हंस दिए हम,
गम अपने भूल बस हंस दिए हम,
दोस्तों के बुलावे पे दौडे चल दिए हम,
छोड़ अपनों को यूँही बस चल दिए हम,
उनका कातिल-ऐ-हुस्न, छीने मेरा चैन-ओ-सुकून,
देख के नज़रे झुकाना, कयामत ढाए हम पे ज़माना,
ये तेरी मस्त हँसी, जैसे कोई कली खिली,
ये कातिल निगाहें, छीन के दिल ले जाए,
देख के नज़रे चुराना, जैसे दिल मेरा जलाना,
देख के हमको छुप जाना, जैसे चांदनी में अमावास आना,
सुनी सुनी गलिया सुना सुना आकाश,
चाँद तारे सबको भेजा यार के पास,
चाँद तारो की छाव में प्यारी नींद आए,
हो हर सपना पुरा यार का मेरे,
दुआ दिल से मेरे बस येही आए,
दिल ने कहा उसे सब कह दे,
गम-ऐ-दिल यार को कह दे,
राज़-ऐ-दिल न यार से छुपा,
दावा न सही यार दुआ तो देगा,
गम सारे लेके मुस्कुराहटे देगा,
कल फिर न सो सका तेरी याद में,
आज फिर न जाग सका तेरी याद से,
इन अश्को ने याद किया हर पल,
एक पल भी न रुके तेरी याद में,
जागना चाहा एक पल तेरी याद से ,
सो गया अगले ही पल तेरी याद में,
छोड़ दिया है साथ अब पलकों ने,
बंद होंगी अब ये सिर्फ़ मेरी मौत पे,
सोया नही हूँ बरसो से एक पल भी मैं,
जागूँगा बरसो अब तो तेरी याद में,
तुझसे नाराज़ होके कहा जायेंगे,
न जियेंगे और न मर पाएंगे,
देके दर्द तुझे हुआ जीना मुश्किल,
सोचता हूँ मेरे बाद क्या जी पाओगे,
खुशी देनी चाही तुझे हज़ार,
मगर दर्द ही दे सका हर बार,
बंधा हुआ हूँ तुझसे एक रिश्ते में,
तोड़ कर उसे कैसे चला जाऊँ,
दुनिया के रिश्ते याद नही मुझको,
तुझसे दिल का रिश्ता कैसे भुलाऊं,
दोस्त कहूँ तुझे या कहूँ मसीहा,
सिखा तुझसे मैंने जीने का सलीका,
यूँ तो बनाये हैं दोस्त हमने कई,
पर न मिल सका तुझ सा दूजा कोई,
सिखा तुझसे मैंने हमेशा आगे बढना,
भूल बीती को सिर्फ़ कल के लिए चलना,
सिखा तुझसे मैंने मुश्किलों से लड़ना,
बन दीवार अड्डिग होके हमेशा जीना,
सिखा तुझसे मैंने कभी किसी से न डरना,
लड़ ज़माने से हर मुकाम हासिल करना,
सिखा तुझसे मैंने सदा खुश रहना,
गम दिल में छुपाके दुसरो को खुशिया देना,
सिखा तुझसे मैंने सदा मुस्कुराते रहना,
दुसरो को मुस्कुराहटे हज़ार देना,
Friday, July 18, 2008
इन्सान किसी से दुनियां मे, एक बार मोहब्बत करता है
इस दर्द को ले कर जीता है, इस दर्द को ले कर मरता है
प्यार किया तो डरना क्या, जब प्यार किया तो डरना क्या
प्यार किया कोई चोरी नहीं की, छूप छूप आहे भरना क्या
आज कहेंगे दिल का फसाना, जान भी ले ले चाहे जमाना
मौत वही जो दुनियां देखे, घूंट घूंट कर यू मरना क्या
उन की तमन्ना दिल में रहेगी, शम्मा इसी महफ़िल में रहेगी
इश्क में जीना, इश्क में मरना, और हमे अब करना क्या
छूप ना सकेगा इश्क हमारा, चारो तरफ हैं उनका नजारा
परदा नहीं जब कोई खुदा से, बंदो से परदा करना क्या
फ़िल्म -मुगले आज़म
गायक -लता मंगेशकर
Thursday, July 17, 2008
हमारी साँसों में आज तक वो हिना की ख़ुशबू महक रही है
पिछला हफ्ता अंतरजाल यानि 'नेट' से दूर रहा। जाने के पहले सोचा था कि नूरजहाँ की गाई ये ग़ज़ल आपको सुनवाता चलूँगा पर पटना में दीपावली की गहमागहमी में नेट कैफे की ओर रुख करने का दिल ना हुआ। वैसे तो नूरजहाँ ने तमाम बेहतरीन ग़ज़लों को अपनी गायिकी से संवारा है पर उनकी गाई ग़ज़लों में तीन मेरी बेहद पसंदीदा रही हैं। उनमें से एक फ़ैज़ की लिखी मशहूर नज़्म "....मुझसे पहली सी मोहब्बत मेरी महबूब ना माँग....." इस चिट्ठे पर आप पहले सुन ही चुके हैं। अगर ना सुनी हो तो यहाँ देखें।
तो आज ज़िक्र उन तीन ग़ज़लों में इस दूसरी ग़ज़ल का। ये ग़ज़ल मैंने पहली बार १९९५-९६ में एक कैसेट में सुनी थी और तभी से ये मेरे मन में रच बस गई थी। लफ़्जों की रुमानियत का कमाल कहें या नूरजहाँ की गहरी आवाज़ का सुरूर कि इस ग़ज़ल को सुनते ही मन पुलकित हो गया था। इस ग़जल की बंदिश 'राग काफी' पर आधारित है जो अर्धरात्रि में गाया जाने वाला राग है। वैसे भी महबूब के खयालों में खोए हुए गहरी अँधेरी रात में बिस्तर पर लेटे-लेटे जब आप इस ग़ज़ल को सुनेंगे तो यक़ीन मानिए आपके होठों पर शरारत भरी एक मुस्कुराहट तैर जाएगी।
हमारी साँसों में आज तक वो हिना की ख़ुशबू महक रही है
लबों पे नग्मे मचल रहे हैं, नज़र से मस्ती झलक रही है
वो मेरे नजदीक आते आते हया से इक दिन सिमट गए थे
मेरे ख़यालों में आज तक वो बदन की डाली लचक रही है
सदा जो दिल से निकल रही है वो शेर-ओ-नग्मों में ढल रही है
कि दिल के आंगन में जैसे कोई ग़ज़ल की झांझर झनक रही है
तड़प मेरे बेकरार दिल की, कभी तो उन पे असर करेगी
कभी तो वो भी जलेंगे इसमें जो आग दिल में दहक रही है
इस ग़जल को किसने लिखा ये मुझे पता नहीं पर हाल ही मुझे पता चला कि इस ग़ज़ल का एक हिस्सा और है जिसे जनाब महदी हसन ने अपनी आवाज़ दी है। वैसे तो दोनों ही हिस्से सुनने में अच्छे लगते हैं पर ये जरूर है कि नूरजहाँ की गायिकी का अंदाज कुछ ज्यादा असरदार लगता है।
शायद इस की एक वज़ह ये भी हैं कि जहाँ इस ग़ज़ल के पहले हिस्से में महकते प्यार की ताज़गी है तो वहीं दूसरे हिस्से में आशिक के बुझे हुए दिल का यथार्थ के सामने आत्मसमर्पण।
तो महदी हसन साहब को भी सुनते चलें,इसी ग़ज़ल के एक दूसरे रूप में जहाँ एक मायूसी है..एक पीड़ा है और कई अनसुलझे सवाल हैं...
हमारी साँसों में आज तक वो हिना की ख़ुशबू महक रही है
लबों पे नग्मे मचल रहे हैं, नज़र से मस्ती झलक रही है
कभी जो थे प्यार की ज़मानत वो हाथ हैं गैरो की अमानत
जो कसमें खाते थे चाहतों की, उन्हीं की नीयत बहक रही है
किसी से कोई गिला नहीं है नसीब ही में वफ़ा नहीं है
जहाँ कहीं था हिना को खिलना, हिना वहीं पे महक रही है
वो जिन की ख़ातिर ग़ज़ल कही थी, वो जिन की खातिर लिखे थे नग्मे
उन्हीं के आगे सवाल बनकर ग़ज़ल की झांझर झनक रही है
Tuesday, July 15, 2008
***सपने अपने अपने***
सपना भी अब एक विज्ञान बन गया है। यही वजह है कि कहते है कि सपने बेकार नहीं होते बल्कि उनके दिखने के पीछे भी राज होता है। जानकारों के मुताबिक कई सपने हमें हमारे अच्छे-बुरे भविष्य की ओर ईशारा भी करते हैं। मसलन आपने सपने में ग्रहण पड़ता हुआ देखा है, तो यह शुभ लक्षण नहीं है। भविष्य में आपको अनेक प्रकार के झंझटों का सामना करना पड़ सकता है। समाज में आपका अपमान, निंदा तिरस्कार आदि भी हो सकता है। आपको कोई रोग भी हो सकता है। आपने स्वप्न में चूड़ियां देखी हैं तो यह शुभ लक्षण है। इसका अर्थ ताउम्र साथ निभाना है। कुंआरी कन्या अगर यह स्वप्न देखती है,तो उसके पति का प्रतीक है और यदि यह स्वप्न कोई विवाहित स्त्री देखती है। तो उसके पति की उम्र लंबी होती है। अगर पति किसी रोग से पीड़ित है,तो वह जल्दी ही रोग मुक्त होने वाला है।आपने स्वप्न में जाल देखा है,तो यह अशुभ स्वप्न है। जाल बंधन का प्रतीक माना गया है। आने वाले समय में आपको किसी मुसीबत या बंधन का सामना करना पड़ सकता है। आपने स्वप्न में फलों से भरा हुआ ठेला देखा है, तो इसे बहुत ही शुभ समझिए। यदि खाली ठेला दिखाई दे, तो यह धनाभाव का संकेत है और यदि ठेला मैले से भरा हुआ है, तो इस बहुत ही अशुभ समझिए। आप स्वप्न में पकवान देख रहे हैं, तो यह सामान्य फलदायी स्वप्न है। आप स्वयं पकवान खा रहे हैं, तो यह रोगावृद्धि का संकेत है और यदि आप किसी दूसरे को पकवान खिला रहे हैं, तो यह अत्यंत ही शुभ है। आपने स्वप्न में रास्ता या पगडंडी देखी है, तो इसका परिणाम शुभ होगा। आप इसे अनेक उलझी हुई समस्याओं के हल का मार्ग मान सकते हैं। यह आपकी समस्याओं के हल का भी प्रतीक है।आप स्वप्न में खुद को परिश्रम करता हुआ देखते हैं, तो यह सफलता का प्रतीक है। भविष्य में आप ज्यादा मेहनत करके अपने कार्यों में सफलता पा सकते हैं। आपने स्वप्न में घास देखी है,तो यह शुभता का प्रतीक है। हरी घास पशु धन के आगमन की सूचना देती है, जबकि सूखी घास घर में निर्धनता की सूचक होती है।आपने स्वप्न में अपने शरीर के किसी अंग में दर्द होता हुआ देखा है, तो आने वाले दिनों में आपके शरीर के किसी भाग में चोट लग सकती है या दर्द हो सकता है। ऐसे कई सपने हैं जिसका कोई न कोई अर्थ माना जाता है। लेकिन सपने का फल कब मिलता है इस पर अब तक विवाद है। लेकिन विषय बेशक दिलचस्प है।
Saturday, April 19, 2008
पत्र से मोबाईल तक
रोचक
मैं पीएच.डी. हो गया हूं !
पीएच.डी. की उपाधि पिछले सात-आठ सालों से अध्यापक कुछ ज्यादा ऐंठने लगे हैं। सरकार को उस ज्यादती का पता चला तो वह सोचने लगी -'हर फेकल्टी मेें अध्यापक इस तरह पीएच.डी. हो रहे हैं, जैसे जमीन की दर से निकलती धड़ा-धड चींटियां।'सरकार ने फौरन आकस्मिक सर्व-दलीय बैठक बुलायी और इस गंभीर विषय पर चर्चा हुई। निर्णय लिया गया कि एक 'सत्य शोधक समिति' बनायी जाए, और एक महीने बाद रिपोर्ट तैयार की जाए। एक महीने के बाद सत्य शोधक समिति ने यह सत्य जान लिया कि अधिक पीएच.डी. होने का अहम कारण सरकार की ओर से मिलने वाले दो ईजाफेहैं। सरकार ने शीघ्र निर्णय लिया कि 'सरकार की ओर से मिलने वाले दो ईजाफे बंद किये जाएं और जिन्होंने दो ईजाफे लिये हैं उनसे वापस लिये जाएं।'सरकार की इस खबर से सारे अध्यापक आलम में खलबली मच गयी। सरकार को मानो ऐसा लग रहा है कि जैसे अध्यापक मात्र दो ईजाफ ो के लिए पीएच.डी. करते हों। वैसे भी, समाज के अधिक व्यक्ति, अध्यापक की अधिक आय को लेकर बहुत दु:खी हैं। कहते हैं, ''दो घंटे पढ़ाते हैं और महीने में तीस हजार पाते हैं।'' सरकार ने यह भी सूचना दी कि पीएच.डी. का स्तर सुधारा जाए। उसका विषय मानव जीवन से संबंधित होना चाहिए। कुछ भी हो मगर अब पीएच.डी. करने वालों की खैर नहीं। अध्यापक मंडलों की स्थिति भी दो ईजाफों जैसी हो गयी है। जो हड़ताल पर उतरे थे उन अध्यापकों के बढाेत्तरी के स्केल सरकारी दफ्तरों में अटके हुये हैं। बेचारों की दयनीय स्थिति है। खैर, यह सब बातें जाने दो, लेकिन यह बात जरूर है कि शिक्षा विभाग में, सरकार क्रांतिकारी तब्दीलियां ला रही है। आज इसी सिलसिले मेें मैं बात करने जा रहा हूं मेरे मित्र शंकरलाल की, आज विज्ञान विभाग में सीनियर अध्यापक के रूप में कार्यरत हैं। मेरे मित्र शंकरलाल ने मात्र पीएच.डी के दो ईजाफे लिये हैं। पीएच.डी. करने का बीड़ा उठाया था। लेकिन हाल ही में सरकार ने जो इजाफे बंद किये उसके वे शिकार हो गये। वे रोता हुआ चेहरा लेकर मेरे पास आये और बोले -''यार, मेरी पीएच.डी. की उपाधि का कोई मतलब नहीं रहा। बहुत पैसे बिगाड़े, पर उगे नहीं।''मैंने कहा - ''मैं कुछ समझा नहीं। शंकर, तू कहना क्या चाहता है?''वह बोला - ''जिसके लिए हमने उपाधि ली वह मकसद पूरा नहीं हुआ।''मैंने कहा - ''यार, मैंने भी अभी-अभी पीएच.डी. की लेकिन मुझे तो बहुत फायदा हुआ।''''क्या तुम्हें दो ईजाफे मिल गये?''''ना भाई ''''तो कैसा फायदा?''मैंने कहा - ''मैंने जिस लेखक पर काम किया, उनकी सभी रचनाओं से परिचित हुआ, और सबसे बड़ी बात यह है कि उस लेखक का सारा रचना संसार पढ़कर आज मैं व्यंग्य लेखक बन गया हूं।'' ''वह क्या होता है?''''यार, तुम्हारे साइंस में नहीं होता।'' ''किसमें होता है?''''कवि-लेखक जो साहित्य लिखते हैं, उसमें होता है।'' इतना समझाने के बाद भी मेरा मित्र कुछ उलझन में था। मैंने पूछा - ''अब किस बात की चिंता है?''वह बोला - ''यार, पीएच.डी. न करता तो अच्छा होता, कम से कम मेरा किया खर्च तो बच जाता। अगर उस रूपये को शेयर मार्केट में डाल देता तो अच्छा होता। यहां तो कोई लाभ नहीं....।'' मैंने कहा - ''अभी भी एक लाभ है।''हंसमुखा चेहरा बनाकर बोला - ''जल्दी बता दे मेरे यार।''मैंने कहा - ''कोई अच्छी कॉलेज में प्रिंसिपल बन जाओ।''आचार्य के लिए पीएच.डी. की उपाधि होना जरूरी है।वह बोला - ''हां यार, बात तो मुद्दे की है।'' मैंने कहा - ''आजकल आचार्य की ढेर सारी जगहें खाली हैं। जगहें भरी नहीं जाती। कारण, उसमें दोनों पक्षों को फायदा होता है। सरकार को भी और ट्रस्टी मंडल को भी।''''वह कैसे?''प्रिंसिपल का वेतन बच जाता है। दूसरी ओर कार्यकारी प्रिंसिपल रखने से ट्रस्टी मंडल उसे जैसे नचाएंगे, बेचारा वैसे नाचेगा। ''लेकिन उनको सेलरी मिलती है।''''हां,''''कितनी?''''जितना अध्यापक को मिलती है।''''एक्स्ट्रा कुछ?''मैंने कहा - ''कुछ नहीं, लेकिन आचार्य का लेबल तो लग जायेगा। साथ-साथ दूसरा फायदा यह है कि अगर आपकी मंडल से अनबन हो गयी तो कुर्सी कभी भी खाली कर सकते हो। मगर पूर्णकालीन आचार्य बन गये और अनबन हो गयी तो.....।''वह बोला - ''मैं तो कार्यकारी प्रिंसिपल ही बनूंगा।''मैंने कहा - ''तुम अच्छे विचारक हो, लेकिन वहां भी एक समस्या है।''''कैसी?''''आपको ट्रस्टी मंडल के आगे-पीछे दुम हिलानी पड़ेगी।''''दुम क्या होती है?''''पूंछ, यार।''''वह तो पशुओं को होती है। मैं तो समाज का श्रेष्ठ शिक्षित व्यक्ति हूं।''मैंने कहा - ''जिस दिन तू कार्यकारी प्रिंसिपल बन गया, उस दिन दुम अपने आप उग निकलेगी। फिर हिलाते रहना।''दुम का बहुत पुराना महत्वपूर्ण इतिहास रहा है। हमारे भारत में दुम की काफी बोलबाला है। इसी सिलसिले में मुझे एक कवि का दोहा याद आ रहा है -दुम हिली कुर्सी मिली, जीभ हिली कि जेल॥मैंने आशीर्वाद देते हुये कहा - ''मित्र, दुम हिलाते रहोगे तो भवसागर पार कर दोगे, लेकिन समाज के एक श्रेष्ठ व्यक्ति का नाश हो जायेगा।''शंकरलाल बनने जा रहे थे कार्यकारी प्रिंसिपल, मगर, उसी समय किसी कॉलेज की पूर्णकालीन आचार्य की जगह आयी। पैसों की लालच को रोक नहीं पाया। वह विज्ञापन की प्रति लेकर मेरे पास आया और कहने लगा -''मैं तो पूर्णकालीन आचार्य बनना चाहता हूं।''''तुम स्वतंत्र हो, जो बनना चाहो बनो, लेकिन यह बताओ कि पीएच.डी. हुये कब? थीसिस तो एकाध महीने पहले तो सबमिट की। मेरी थीसिस सबमिट करने के बाद पांच या छ: महीने में डिग्री आयी थी।''वह बोला - ''उसकी चिंता छोड़, वह सब हो जाएगा।''शंकरलाल रात दिन एक करने लगे। लगभग थीसिस सबमिट करने के बाद डेढ़ महीने में डिग्री लाने में सफल हो गये। इस देश में सब कुछ संभव है। मैंने सुना था कि दक्षिण के किसी राज्य में कुएं की चोरी हो गयी थी, और उस पर मुकदमा भी चला था। सुई के छेद से ऊंट का निकलना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है, लेकिन किसी खिल्ले को पकड़ लिया तो यह काम भी मुमकिन हो जाएगा। भाई, ये हिन्दुस्तान है। शंकर ने मेरे पास आकर कहा - ''डिग्री आ गयी, लेकिन अभी तक इंटरव्यू नहीं निकला।''मैंने कहा - ''यार, आचार्य के सभी गुण आपमें विद्यमान हैं। तुम शीघ्र आचार्य का पद ग्रहण करो।''शंकरलाल आचार्य बनने जा रहे थे, इस खबर से कुछ अध्यापक मित्रों ने सुझाव दिये कि यार, हमारी कौम पर थोड़ी दया रखना, नवनीत ने कहा कि थोड़ा प्रैक्टिकल रहना। शंकरलाल ने सभी मित्रों के सुझावों का ख्याल रखने का वादा किया। इंटरव्यू निकला, शंकरलाल ने जोड़ तोड़ शुरु कर दिया। शंकरलाल राजनीतिक दबाव भी लाए, लेकिन इंटरव्यू में ट्रस्टी का जमाई भी था। उसक ा सिलेक्शन हो गया। इंटरव्यू के दूसरे दिन रोता हुआ चेहरा लेकर आया, और जमीन पर गिरते हुये सहसा उसके मुंह से निकल गया -''हे भगवान! मैं पीएच.डी. क्यों हुआ?''
वरदान मुँशी प्रेमचँद की कहानी
अर्धरात्रि व्यतीत हो चुकी थी। चारों और भयावह सन्नाटा छाया हुआ था। गंगाजी की काली तरंगें पर्वत के नीचे सुखद प्रवाह से बह रही थीं। उनके बहाव से एक मनोरंजक राग की ध्वनि निकल रही थी। ठौर-ठौर नावों पर और किनारों के आस-पास मल्लाहों के चूल्हों की आंच दिखायी देती थी। ऐसे समय में एक श्वेत वस्त्रधारिणी स्त्री अष्टभुजा देवी के सम्मुख हाथ बांधे बैठी हुई थी। उसका प्रौढ़ मुखमण्डल पीला था और भावों से कुलीनता प्रकट होती थी। उसने देर तक सिर झुकाये रहने के पश्चात कहा।
‘माता! आज बीस वर्ष से कोई मंगलवार ऐसा नहीं गया जबकि मैंने तुम्हारे चरणो पर सिर न झुकाया हो। एक दिन भी ऐसा नहीं गया जबकि मैंने तुम्हारे चरणों का ध्यान न किया हो। तुम जगतारिणी महारानी हो। तुम्हारी इतनी सेवा करने पर भी मेरे मन की अभिलाषा पूरी न हुई। मैं तुम्हें छोड़कर कहां जाऊ?’
‘माता! मैंने सैकड़ों व्रत रखे, देवताओं की उपासनाएं की’, तीर्थयाञाएं की, परन्तु मनोरथ पूरा न हुआ। तब तुम्हारी शरण आयी। अब तुम्हें छोड़कर कहां जाऊं? तुमने सदा अपने भक्तो की इच्छाएं पूरी की है। क्या मैं तुम्हारे दरबार से निराश हो जाऊं?’
सुवामा इसी प्रकार देर तक विनती करती रही। अकस्मात उसके चित्त पर अचेत करने वाले अनुराग का आक्रमण हुआ। उसकी आंखें बन्द हो गयीं और कान में ध्वनि आयी।
‘सुवामा! मैं तुझसे बहुत प्रसन्न हूं। मांग, क्या मांगती है?
सुवामा रोमांचित हो गयी। उसका हृदय धड़कने लगा। आज बीस वर्ष के पश्चात महारानी ने उसे दर्शन दिये। वह कांपती हुई बोली ‘जो कुछ मांगूंगी, वह महारानी देंगी’ ?
‘हां, मिलेगा।’
‘मैंने बड़ी तपस्या की है अतएव बड़ा भारी वरदान मांगूगी।’
‘क्या लेगी कुबेर का धन’?
‘नहीं।’
‘इन्द का बल।’
‘नहीं।’
‘सरस्वती की विद्या?’
‘नहीं।’
‘फिर क्या लेगी?’
‘संसार का सबसे उत्तम पदार्थ।’
‘वह क्या है?’
‘सपूत बेटा।’
‘जो कुल का नाम रोशन करे?’
‘नहीं।’
‘जो माता-पिता की सेवा करे?’
‘नहीं।’
‘जो विद्वान और बलवान हो?’
‘नहीं।’
‘फिर सपूत बेटा किसे कहते हैं?’
‘जो अपने देश का उपकार करे।’
‘तेरी बुद्वि को धन्य है। जा, तेरी इच्छा पूरी होगी।’
अबोध प्रतिशोध
Friday, April 18, 2008
मन का दर्द - कलम का माध्यम
एक किसान की एक दिन अपने पड़ोसी से खूब जमकर लड़ाई हुई। बाद में जब उसे अपनी गलती का अहसास हुआ, तो उसे ख़ुद पर शर्म आई। वह इतना शर्मसार हुआ कि एक साधु के
समाधान
एक बार पिता अपनी दोनों पुत्रियों से मिलने गया। पहली बेटी से हालचाल पूछा तो उसने कहा कि इस बार हमने बहुत परिश्रम किया है और बहुत सामान बनाया है। बस यदि वर्षा न आए तो हमारा कारोबार खूब चलेगा।
बेटी ने पिता से आग्रह किया कि वो भी प्रार्थना करे कि बारिश न हो।
फिर पिता दूसरी बेटी से मिला जिसका पति किसान था। उससे हालचाल पूछा तो उसने कहा कि इस बार बहुत परिश्रम किया है और बहुत फसल उगाई है परन्तु वर्षा नहीं हुई है। यदि अच्छी बरसात हो जाए तो खूब फसल होगी। उसने पिता से आग्रह किया कि वो प्रार्थना करे कि खूब बारिश हो।
एक बेटी का आग्रह था कि पिता वर्षा न होने की प्रार्थना करे और दूसरी का इसके विपरीत कि बरसात न हो। पिता बडी उलझन में पड गया। एक के लिए प्रार्थना करे तो दूसरी का नुक्सान। समाधान क्या हो ?
पिता ने बहुत सोचा और पुनः अपनी पुत्रियों से मिला। उसने बडी बेटी को समझाया कि यदि इस बार वर्षा नहीं हुई तो तुम अपने लाभ का आधा हिस्सा अपनी छोटी बहन को देना। और छोटी बेटी को मिलकर समझाया कि यदि इस बार खूब वर्षा हुई तो तुम अपने लाभ का आधा हिस्सा अपनी बडी बहन को देना।
कहानियाँ
उलझन
ए फॉर एप्पल, बी फॉर बैट’ एक देसी बच्चा अँग्रेजी पढ़ रहा था। यह पढ़ाई अपने देश भारत में पढ़ाई जा रही थी।
‘ए फार अर्जुन – बी फार बलराम’ एक भारतीय संस्था में एक भारतीय बच्चे को विदेश में अँग्रेजी पढ़ाई जा रही थी।
अपने देश में विदेशी ढंग से और विदेश में देसी ढंग से। अपने देश में, ‘ए फॉर अर्जुन, बी फॉर बलराम’ क्यों नहीं होता? मैं उलझन में पड़ गया।
मैं सोचने लगा अगर अँग्रेजी हमारी जरूरत ही है तो ‘ए फार अर्जुन – बी फार बलराम’ ही क्यों न पढ़ा जाए?
दुख का कारण
नौकर ने अपनी ओढ़ी हुई चादर चोर को दे दी और बोला, इसमें बांध लो। उसे जगा देखकर चोर सामान छोड़कर भागने लगा। किन्तु नौकर ने उसे रोककर हाथ जोड़कर कहा, भागो मत, इस सामान को ले जाओ ताकि मैं चैन से सो सकूँ। इसी ने मेरे मालिक की नींद उड़ा रखी थी और अब मेरी। उसकी बातें सुन चोर की भी आंखें खुल गईं।
बहुत बार ये प्रश्न सामने आते हैं कि हम स्वतंत्र है या परतंत्र? हम कर्म करने में स्वतंत्र हैं या परतंत्र? हम कर्म का फल भोगने में स्वतंत्र हैं या परतंत
आराम करो
दूरदर्शी
जो मनुष्य केवल काम के प्रारम्भ को देखता है, वह अन्धा है। जो परिणाम को ध्यान में रखे, वह बुद्धिमान है। जो मनुष्य आगे होने वाली बात को पहले ही से सोच लेता है, उसे अन्त में लज्जित नहीं होना पड़ता।