Friday, April 18, 2008

जिन्दा मछली

माधुरी को मैं प्यार से मधुरा कहता। वह बहुत ही मीठा बोलती। मेरे दोस्त फोन पर उसकी आवाज सुनने के बाद किसी न किसी बहाने मेरे घर आना चाहते। वह चहकती रहती, सब उससे खुश रहते। लोगों की खुशी देखकर मुझे अच्छा लगता। स्त्री का यह रूप मुझे एक्वेरियम की उस रंगीन मछली सा लगता, जो पल भर को सब दु:ख भुला देती है। उसे यू.एस.ए. गये तीन वर्ष बीत गये हैं। उसने सायकोलॉजी में एम.ए. किया था। उसकी मधुर आवाज के कारन उसे वहां काऊन्सिलर की नौकरी मिल गई। उसके जाने के बाद मैं बहुत अकेला हो गया था।वह जब यहां थी, अक्सर शाम को हम मिसीस चावला के यहां जाया करते। उनके पति देर से घर आते। 11 बजे तक या फिर रात को न भी आते। हम तीनों कॉफी पीते, देर रात तक बैठते। मैं उन्हें पसंद करता था। यह बात वो भी जानती थी और मधुरा भी। एक शाम मैं उनके घर चला गया। कॉफी भी पी लेकिन वो बात नहीं थी। मेरा अकेला आना शायद उन्हें पसंद नहीं आया। अब तो वे बचने लगीं, रास्ते में मिलती तो भी हाय-हलो तक नहीं करती। मौसम से मजबूर होकर एक नदी ठहर गई थी। मछलियां बर्फ हो चुकी थीं।मैं रेड लाईट एरिया पर रिसर्च कर रहा था। मैं हमेशा मधुरा को वहां साथ ले जाता। उसके रहते उन स्त्रियों को समझने में मुझे आसानी रहती। हम दोनों हर संभव उनके विकास के लिए प्रोजेक्ट बनाते। मेरा रिसर्च वर्क पूरा होने को था। शायद यह मेरी वहां की अंतिम मुलाकात थी। उस रात मैं वहां से काफी देर से घर लौटा। वह एक अकस्मात था जिसके बारे में मैनें कभी सोचा भी नहीं था। मुझे अपने आप से नफरत होने लगी। अब कभी वहां न जाने की कसम खा ली। कुछ दिनों से मेरी तबीयत खराब रहने लगी थी, एक अनजान भय ने घेर लिया। आज अस्पताल के बाहर बैठा पिछले तीन साल का लेखा जोखा लेता हूं। हर पल वह टूटन, वह अकेलापन, पल भर के प्यार की एक तड़प मुझे अपने गलत न होने का अहसास दिलाती है।अचानक नर्स ने दरवाजा खोला, 'डाक्टर साहब बुला रहे हैं।' मैं अन्दर जाता हूं। 'एच.आई.वी. टेस्ट नेगेटिव है।' मेरी आंखें खुशी से भर जाती हैं। मैं मधुरा को मैसेज करता हूं। 'आई एम नोट वैल, कम सून'।

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