Saturday, July 19, 2008

दोस्त कहूँ तुझे या कहूँ मसीहा,

दोस्त कहूँ तुझे या कहूँ मसीहा,
सिखा तुझसे मैंने जीने का सलीका,

यूँ तो बनाये हैं दोस्त हमने कई,
पर न मिल सका तुझ सा दूजा कोई,

सिखा तुझसे मैंने हमेशा आगे बढना,
भूल बीती को सिर्फ़ कल के लिए चलना,

सिखा तुझसे मैंने मुश्किलों से लड़ना,
बन दीवार अड्डिग होके हमेशा जीना,

सिखा तुझसे मैंने कभी किसी से न डरना,
लड़ ज़माने से हर मुकाम हासिल करना,

सिखा तुझसे मैंने सदा खुश रहना,
गम दिल में छुपाके दुसरो को खुशिया देना,

सिखा तुझसे मैंने सदा मुस्कुराते रहना,
दुसरो को मुस्कुराहटे हज़ार देना,

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