Friday, April 18, 2008

भाई हो तो कैसा?

मिलहिं न जगत सहोदर भ्राता। जब लक्ष्मण को शक्ति लगी तब श्रीराम के हृदय से यही उद्गार गोस्वामी तुलसीदास जी ने कहलवाये थे। आज के समय में ये कितने सामयिक हैं, आइए विवेचना करते हैं, सोचते हैं। भाई एक संबंध है। भाई एक सहारा होता है। भाई एक ध्वनि है, भाई एक वाद है एक शक्ति है, पर भाई दुर्बलता भी है। हमारे गुजरात में 'भाई केम छो' में जो मिठास है, अपनापन है, आत्मीयता है तो बंबई का टपोरीपन 'भाई क्या करेला है' एकदम अलग रंग, भाषा। बंबई का भाई वास्तव में भाई होता है। भाई बोले तो बिना डिग्री के 'एम बी बी एस'। भाई और भैया अलग-अलग धु्रव होते हैं। पर जो बात भाई में है वो ब्रदर, बिरादर या भैया में नहीं है। भाई होते थे, भाई होते हैं, भाई होते रहेंगे। परेशभाई अगर गुजरात की मुस्कान बिखेर सकते हैं तो बशीरभाई चाहे जिस प्रांत के हों खौफ भी पैदा कर सकते हैं। अपवाद तो हर जगह हैं। श्रीराम ने उच्च आचरण, अनुपम, अतुलनीय, ऊंचे आदर्श स्थापित कर दिये और चल दिये वन को। एक भाई भी साथ चल दिया वन को। और जो भाई न जा सका वो उनकी पादुका लेकर ही राज्य चलाने लगा। सत्ता संपत्ति के लिए भाई से भाई भिड़े नहीं।उसी काल में दशानन का भाई था धर्मपरायण और निष्ठावान। अपहरण को गलत कहा औैर भाई को छोड़ दिया। नतीजा सोने की लंका जल गयी। सुग्रीव, बाली भी भाई थे। इतिहास गवाह है, शाहजहां ने भाइयों को मारकर ही राज किया और क्या इतिहास औरंगजेब औैर दाराशिकोह को भूल सकता है। फिर इतिहास कौरव और पांडवों को कैसे भूल पायेगा। भाई-भाई के संबंधों को भारतीय सिनेमा में भी खूब बखाना गया। एक भाई वेरी गुड दूसरा भाई वेरी बेड। दो भाई अच्छे हो ही नहीं सकते, कहानी कहां बनेगी। 'उपकार' में मनोज कुमार औैर प्रेम चोपड़ा, 'गंगा-जमुना' दिलीप कुमार और नासिर खान 'मदर-इंडिया' में सुनील दत्त और राजेन्द्र कुमार। फिल्म दीवार में एक भाई जो वेरी गुड है, चीखता है 'भाई तुम साइन करोगे कि नहीं?' वेरी बेड भाई शांति से कहता है 'डेम टू साइन'। एक के पास दौलत है और दूसरे के पास है 'मां'। अंत में एक भाई दूसरे को मार ही देता है, आखिर भाई जो था। भाई की पत्नी भाभी कहलाती है। भाई के बच्चे भतीजे होते हैं। तभी शायद भाई के साथ भाई-भतीजावाद कहा जाता है। हालांकि राजनीति के मंच पर प्रजावाद या पुत्रीवाद की फसल लहलहा रही है पर बदनाम होता है भाई-भतीजावाद। भाई के साथ आदरसूचक जी या साहब लगाने का भी रिवाज है। वह भाईजी या भाई साहब सौम्य सुसंस्कृत होकर सभ्य होते हैं। खाली भाई ही भाई निकलता है। भाई की अनेक श्रेणियां हैं। रामायण में भरत का चरित्र सुनकर आंसू बहाने वाले भी व्यक्तिगत जीवन में सहोदर भाई से फौजदारी, जमीन का मुकदमा लड़ते पाये जाते हैं। ये श्रद्धालु भाई होते हैं। ये दयालु भी भाई होते हैं पर उनकी कृपा प्राय: भारी पड़ती है। अभी कुछ समय पहले की बात है। तीन भाई थे, चार भी होते तो क्या था? छोटे भाई ने अपने बड़े भाई के शरीर में तीन गोलियां उतार दी। जिस भाई ने उसे पाला, इात दिलाई, उसी का शरीर छलनी कर दिया। भाई का नाम और काम सार्थक हो गया। भाई ही भाई के खून का प्यासा! भाई से सावधान रहें। अब, शायद इसीलिए आज से पचास वर्र्ष पूर्व कवि शैलेंद्र लिख गये -ये लूट खसोट ए डाकाजनीभाई की भाई से न बनी, उस देश में यह भी होता हैजिस देश मेें गंगा बहती है। ईश्वर भाई की भूमिका की रक्षा करे। काश! आज भी कोई तुलसी आकर कह जाये - 'मिलहिं न जगत सहोदर भ्राता

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