Friday, April 18, 2008

मन का दर्द - कलम का माध्यम

गुजरात में जब भी साहित्य, कविता, कहानी की बात होती है तो अहमदाबाद का जिक्र स्वत: ही आ जाता है। वहां पर कई जाने-माने लेखकों-कवियों ने अपनी सेवाएं दी तो आज के दौर में भी कई जाने-माने लेखक, कवि, कथाकार अहमदाबाद से ताल्लुक रखते हैं जिनमें डॉ. अम्बाशंकर नागर, आचार्य रघुनाथ भट्ट, भागवतप्रसाद मिश्र 'नियाज', भगवानदास जैन, किशोर काबरा, मालती दुबे आदि अनेकों नाम है और इसी ऊर्वरा भूमि पर एक संवेदनशील कवि भी अपनी अलग पहचान बना रहा है जिसका नाम है - यशंवत शर्मा। और हाल ही में हिन्दी साहित्य अकादमी के सहयोग से प्रकाशित उनकी कृति प्रकाशित हुई है जिसका नाम है - 'नित नयी दिवारें'। इसमें कवि ने इक्यावन कविताओं को पाठकों के समक्ष रखा है।संग्रह की सभी कविताएं छन्दमुक्त हैं, फिर भी उनकी लयबद्धता और संगीतात्मकता बनी हुई है। कवि ने अपने आस-पास के माहौल को ही कविताओं का विषय बनाया है। एक तरह यह आदमी के द्वारा, आदमी के लिए, आदमी के आदमी बने रहने पर जोर देने वाली कविता है। आज का आदमी प्रेम की प्यास लिए तड़फता ही रहता है तभी तो कवि अपनी कविता 'जिन्दा लाश' में लिखता है - भटक रहा है न जानेकिसकी तलाश में,बनकर रह गया हैजिन्दा लाश मैं'। पृष्ठ-56अपनी जीने की गहरी ललक को रेखांकित करती हुई कवि की कुछ पंक्तियां देखिए -औरों की तरहनकाब,चेहरे पर धर नहीं सकते।तो क्या इस दुनियां में,हम जी भी नहीं सकते?' पृष्ठ-9यूं तो कवि यशवंत शर्मा रोमांटिक मिजाज के कवि बिल्कुल नहीं प्रतीत होते, किन्तु फिर भी कहीं-कहीं अपने आपको रोक भी नहीं पाते हैं। तभी -मिले सफर में एक बार फिरअजनबी की तरह,न उन्होंने कुछ कहान इन्होंने कुछ सुनाबस नजरों नेनजरों सेबहुत कुछ बुना। पृष्ठ-46वैसे अपनी कविताओं अक्सर कवि यशंवत शर्मा समाज, देश व परिवार की चिन्ताओं से झूझते हुए दिखाई देते हैं। कहीं वे बहन के हाथ पीले करने की बात करते हैं तो कहीं रिश्तों को बचाने की, कहीं सांप्रदायिक दंगों की तो कहीं खोखले आदर्शो की।वास्तव में रचनाकार ने जो कुछ आस-पास देखा है उसे आहत मन अपने भावों को शब्दों के माध्यम से कविता में पेश करता है। रचनाकार के मन में बड़ा दर्द है और वह खोखले आदर्शो की पोल खोलना चहाता है। तभी तो वह लिखता है -एक खाई को पाटने के लिएअन्य खाइयों को कैसे खोदा जाता है।कविता संग्रह में एहसास, सहनशीलता, आप और हम, और मेरा जलना....?, याद, कर्मभूमि, ऊंचाई आसमान की, दिवारें, विरासत आदि अच्छी बन पड़ी है। लम्बी कविताओं की बजाय छोटी कविताएं ज्यादा सशक्त हैं। कवि का यह पहला काव्य संग्रह है जो उनमें छुपी हुई अंनत संभावनाओं से रू-ब-रू कराता प्रतीत होता है। पुस्तक की भूमिका डॉ. रामकुमार गुप्त ने लिखी है जो अपने आप में महत्वपूर्ण है।पुस्तक का मूल्य 45 रू. रखा गया है जो कि कम प्रतीत होता है। छपाई सुरुचिपूर्ण है। कवर पृष्ठ साधारण है। पुस्तक कवि ने स्वयं साहित्य आकादमी के सहयोग से प्रकाशित करवाई है। लेखक का पता : यशवन्त शर्मा 'यश', 152, आर्नेद वन ट्वीन्स, आर्नेदनगर, जाफराबाद, गोधरा

No comments: