गर आँसू तेरी आँख का होता,
गिरता गाल को चुमते हुए,
फिर गिर के तेरे होठों पर,
फना हो जाता वहीं हॅसते हुए,
पर
जो तुम होती मेरी आँख का आसु,
भले गुजरती उम्र गम सह-सह कर,
तुझे खो ना दूं कही इस डर से,
मै ना रोता ज़िदगी भर|
Saturday, July 19, 2008
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3 comments:
गर आँसू तेरी आँख का होता,
गिरता गाल को चुमते हुए,
फिर गिर के तेरे होठों पर,
फना हो जाता वहीं हॅसते हुए,
बहुत सुन्दर
स्वागत पंकज जी............
हो सके तो ये वर्ड वेरीफिकेशन हटा लें ।
बहुत बढिया.
लिखते रहिये.
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यहाँ भी आयें;
उल्टा तीर
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